12Vastu रक्षाबंधन Rakhi raksha bandhan 2020
भारतीय संस्कृति का रक्षाबंधन महोत्सव, जो श्रावणी पूनम के दिन मनाया जाता हे, आत्मनिर्माण, आत्मविकास का पर्व हे |
आज रक्षाबंधन के पर्व पर बहन भाई को आयु , आरोग्य और पुष्टि की वृद्धि की भावना से
राखी बाँधती है | अपना उद्देश्य ऊँचा बनाने का संकल्प लेकर ब्राह्मण लोग जनेऊ
बदलते हैं,
रक्षाबंधनका का उत्सव श्रावणी पूनम को ही क्यों रखा गया
! भारतीय संस्कृति में संकल्पशक्ति के सदुपयोग की सुंदर व्यवस्था हे. ब्राह्मण
कोई शुभ कार्य कराते हैं, तो कलावा ( रक्षासूत्र ) बाँधते हैं ताकि आपके शरीर में
छुपे दोष या कोईरोग , जो आपके शरीर को अस्वस्थ कर रहा हो, उनके कारण आपका मन और
बुद्धि भी निर्णय लेने में थोड़े अस्वस्थ न रह जाये |
सावन के महीने में सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ती हैं. जिससे किसी को दस्त,
किसी को उल्टियाँ, किसीको अजीर्ण, किसीको बुखार हो जाता है तो किसीका शरीर टूटने
लगता है. इसलिए रक्षाबंधन के दिन रक्षासूत्र बाँध कर तन–मन–मति की
स्वास्थ्य-रक्षा का संकल्प किया जाता है, कितना रहस्य है !
अपना शुभ संकल्प और शरीर के ढांचे की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यह श्रावणी
पूनम का रक्षाबंधन महोत्सव है | आज के दिन रक्षासूत्र बांधने से वर्ष भर रोगों से
हमारी रक्षा रहे, ऐसा एक – दूसरे के प्रति सत् संकल्प करते हैं | रक्षाबंधन
के दिन बहन भाई के ललाट पर तिलक – अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि “ जेसे शिवजी
त्रिलोचन हैं , ज्ञानस्वरूप हैं, वेसे ही मेरे भाई में भी विवेक बढ़े, मोक्ष के
ज्ञान, मोक्ष्मय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश आये. मेरा भाई इस सपने जैसी दुनिया
को सच्चा मानकर न उलझे, मेरा भाई साधारण चर्मचक्षुवाला न हो, दूरद्रष्टा हो|
“क्षणे रुष्ट: क्षणे तुष्ट: “न हो, जरा – जरा बात में भडकने वाला न हो, धीर –
गंभीर हो. मेरे भाई की सूझबूझ, यश, कीर्ति और ओज – तेज अक्षुण रहें. भैया को
राखी बांधी और मुहँ मीठा किया, भाई गद् गद् हो गया | बहन का शुभ संकल्प होता है और
भाई का बहन के प्रति सदभाव होता है, भाई को भी बहन के लिए कुछ करना चाहिए, अभी तो
चलो साडी, वस्त्र या कुछ दक्षिणा दे दी जाती है परन्तु यह रक्षाबंधन महोत्सव
दक्षिणा या कोईचीज देने से वहीँ संपन्न नहीं हो जाता. आपने बहन की शुभकामना ली है
तो आप भी बहन के लिए शुभ भाव रखें कि ‘अगर मेरी बहन के ऊपर कभी भी कोई कष्ट, विध्न
– बाधा आये तो भाई के नाते बहन के कष्ट में दौड़कर पहुँच जाना मेरा कर्तव्य है | ‘बहन
की धन – धान्य, इज्जत की दृष्टि से तो रक्षा करें, साथ ही बहन का चरित्र उज्जवल
रहें ऐसा भाई सोचे और भाई का चरित्र उज्जवल बने ऐसा सोचकर बहने अपने मन को काम में
से राम की तरफ ले जायें. इस भाई – बहन के पवित्र भाव को उजागर करके न जाने कितने
लोगों ने युद्ध टाल दीये, कितनी नरसंहार की कुचेष्टाएं इस धागे ने बचा ली |
सर्वरोगोंपशमनम् सर्वा शुभ विनाशनम् I
सक्र्त्क्रते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् II
‘इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक
है. इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है ,यह पर्व
समाज के टूटे हुए मनो को जोड़ने का सुंदर अवसर है. इसके आगमन से कुटुंब में आपसी
कलह समाप्त होने लगते हैं , दूरी मिटने लगती है, सामूहिक संकल्पशक्ति साकार होने
लगती है |
सब कुछ देकर त्रिभुवनपति को अपना द्धारापाल बनाने वाले बलि को लक्ष्मीजी ने राखी
बांधी थी | राखी बाँधनेवाली बहन अथवा हितैषी व्यक्ति के आगे कृतज्ञता का भाव
व्यक्त होता है | राजा बलि ने पूछा : “ तुम क्या चाहती हो “ लक्ष्मी जी ने कहा :
“वे जो तुम्हारे नन्हें – मुन्ने द्धारापाल है , उनको आप छोड़ दो “.
भक्त के प्रेम से वश होकर जो द्धारापाल की सेवा करते हैं, ऐसे भगवान नारायण को
द्धारापाल के पद से छुडाने के लिए लक्ष्मीजी ने भी रक्षाबंधन महोत्सव का उपयोग
किया |
सर्व
मांगल्यकारी वैदिक रक्षासूत्र
भारतीय संस्कृति में ‘रक्षाबंधन पर्व’ की बड़ी भारी महिमा है । इतिहास साक्षी है कि इसके द्वारा अनगिनत पुण्यात्मा लाभान्वित हुए हैं फिर चाहे वह वीर योद्धा अभिमन्यु हो या स्वयं देवराज इन्द्र हो । इस पर्व ने अपना एक क्रांतिकारी इतिहास रचा है ।
वैदिक रक्षासूत्र
रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है । यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामथ्र्य असीम हो जाता है ।
कैसे बनायें वैदिक राखी ?
वैदिक राखी बनाने के लिए एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें । उसमें (१) दूर्वा (२) अक्षत (साबूत चावल) (३) केसर या हल्दी (४) शुद्ध चंदन (५) सरसों के साबूत दाने - इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें । फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें । सामथ्र्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं ।
वैदिक राखी का महत्त्व
वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जानेवाले संकल्पों को पोषित करती हैं ।
(१) दूर्वा : जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें...’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा । दूर्वा गणेशजी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बाँध रहे हैं उनके जीवन में आनेवाले विघ्नों का नाश हो जाय ।
(२) अक्षत (साबूत चावल) : हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखंड और अटूट हो, कभी क्षत-विक्षत न हो - यह अक्षत का संकेत है । अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं । जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय ।
(३) केसर या हल्दी : केसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो । उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय । केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं । हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है । यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है ।
(४) चंदन : चंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है । यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो । उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे । उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले ।
(५) सरसों : सरसों तीक्ष्ण होती है । इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज-द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें ।
अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व-मंगलकारी है । यह रक्षासूत्र बाँधते समय यह श्लोक बोला जाता है :
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वां अभिबध्नामि१ रक्षे मा चल मा चल ।।
इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, माँ अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बाँध सकती है । यही नहीं, शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सद्गुरु को प्रेमसहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है तथा गुरुभक्ति बढ़ती है ।
लेखक विश्वनाथ ✎
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें