12Vastu शिव का सावन, Shiv ka sawan
सावन का नाम सुनते ही हमारे दिलो में एक ठण्डक का एहसास होता है, मन झूमने लगता है,
सावन मतलब बरसात, सावन मतलब हरियाली यानि प्रकृति का सुंदर रूप, हरे-भरे पेड़, महकती हवा, मन बाग-बाग हो जाता है।
सावन की बात हो तो महादेव का नाम तो अपने आप जुबान पर आता हैं, देवों के देव महादेव, आप की सदा जय हो। हर हर महादेव
शिव का सावन, Shiv Ka Sawan
सावन में शिव की कृपा होती है, यह धरती होती है हरी-भरी, माँ गंगा होती है वेग के साथ।
सावन मास में महा शिव रात्रि आती है, जो कि शिव भक्तो के लिए अमृत है,
सावन मास में हिन्दू धर्म के लोग अपने अपने तरीके से, बड़े ही उत्साह के
साथ भगवान शिव की पूजा और आराधना करते है।
शिव ही सत्य है, शिव ही अनंत है, शिव ही पूजा है, शिव ही प्रकाश है, शिव वरदान है।
शिव जगत पिता है, शिव अपने भक्त के अधीन हैं।
भारत को देवी देवताओं तथा त्योहारो का देश कहा गया है।
सावन मास में भगवान शिव का मोहक रूप होता है।
इस वर्ष सावन के 5 सोमवार हैं।
पहला व्रत 6 जुलाई - 2020 सोमवार
दूसरा व्रत 13 जुलाई - 2020 सोमवार
तीसरा व्रत 20 जुलाई - 2020 सोमवार
चौथा व्रत 27 जुलाई - 2020 सोमवार
पांचवा व्रत 3 अगस्त - 2020 सोमवार
सावन का सोमवार व्रत कर माँ पार्वती ने शिव को पाया था, माँ पार्वती ने सावन में
सोमवार के व्रत कर शिव को प्रसन्न किया और उनकी भार्या बनी।
सावन में कुवारी कन्याएँ सावन के सोमवार व्रत रख कर भगवान शिव को प्रसन्न करती हैं।
सावन में शिव लिंग का शुद्ध जल से अभिषेक किया जाता है।
इस जल में कच्चा दूध, गंगा जल, शहद, चावल, देसी घी मिला कर चढ़ाया जाता है।
सावन में बिल पत्र जो कि 3 पत्र से 26 प्रकार के पत्र पाए जाते है,
जो कि शिव लिंग पर चढ़ाए जाते हैं।
भांगके पत्र, धतूरे के पत्र, बिल के पत्र, तथा
5 प्रकार के फल चढ़ा कर भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है।
सावन में शिव लिंग का शुद्ध जल से अभिषेक किया जाता है।
इस जल में कच्चा दूध, गंगा जल, शहद, चावल, देसी घी मिला कर चढ़या जाता है।
Shiv |
शिव गायत्री मन्त्र :
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तत्रो रूद्र प्रचोदयात। ।
ऐसा माना जाता है, जो भी सावन के सोमवार को व्रत रखता है उन्हें पुण्य पूरे वर्ष के
सोमवार के व्रत करने का पुण्य मिल जाता है
इस बार का संयोग है सावन में चौथा सोमवार चित्रा नक्षत्र के साथ है
तथा पूजा का समय प्रातः 9 से 10 30 तक का है।
शिव शीतल जल अभिषेक
शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास में ही समुन्द्र मंथन हुआ था।
दानव और देवता दोनों ही समुद्र मंथन के दौरान निकले पदार्थो को बारी बारी से
प्राप्त कर रहे थे,
जब हलाहल विष निकला तो भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में धारण किया।
जिस से उनका कंठ नीला पड़ गया, तथा भागवान शिव को नीलकंठ महादेव के
नाम से जाना गया, लेकिन विष के कारण शिव का देह गरम हो गया, तभी सब
देवताओं ने शिव पर शीतल जल अभिषेक किए ताकी शिव का ताप कम हो।
इसलिए भी शीतल जल से अभिषेक किया जाता है।
श्रावण मास में काबड़ का बिशेष महत्व है।
बहुत सारे लोग सावन मास या श्रवण मास में हरिद्वार से अपने घर तक काबड़ ले कर आते है।
इस काबड़ में गंगा जल भरा होता है। उस गंगा जल को भगवान भोले का भक्त बड़ी ही श्रद्धा से
शिव लिंग पर अर्पण करता है तथा भगवान भोले नाथ को प्रसन्न करता है।
यह माना जाता है रावण से बड़ा कोई भी भक्त नहीं है।
सावन की पूजा का फल
"जौ" के साथ की गई पूजा सुख देती है।
शिव पुराण में लिखा है की भगवान शिव पर अखंड चावल चढ़ाने पर धन की कमी नहीं होती, यह अति उत्तम प्रयोग है।
गेहूँ से या गेहूँ के बने पकवान से की गई पूजा पुत्र रत्न की प्राप्ति कराती है।
शनि के दोषो से बचने के लिए शिव पर काले तिल अर्पण करो।
सावन में भंडरा करने पर घर में अनाज की कमी नहीं होती
विवाह में रुकावट है, सावन में व्रत पूजा और शिव का ध्यान बना देगा सुन्दर विवाह योग
केवड़ा और केतकी के फूल शिव पूजा में प्रयोग नहीं होते
शिव को बिल पत्र धतूरे का फूल प्रिय है
बेला, जूही, कनेर,हारसिगार, कमल, गेंदा, चमेली व अन्य फूल शिव को प्रिय है।
वाहन सुख के लिए चमेली के फूल अर्पित करें।
शम्मी के पत्ते शिव लिंग पर अर्पित करने से मोक्ष की प्रप्ति होती है।
सुन्दर व सुशील पत्नी पाने के लिए बेला के फूल अर्पिंत करने चाहिये।
शिव का सावन, Shiv Ka Sawan
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